गिरफ्तारी या 30 दिन हिरासत पर पीएम-सीएम की चली जाएगी कुर्सी, लोकसभा में 3 बिलों पर जमकर हुआ बवाल

नई दिल्ली। लोकसभा में बुधवार को भारी हंगामा देखने को मिला, जब केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने तीन विवादास्पद विधेयक सदन में पेश किए। ये विधेयक प्रधानमंत्री या किसी मुख्यमंत्री को उनके पद से हटाने से जुड़े हैं, अगर वे किसी गंभीर अपराध में गिरफ्तार होकर 30 दिनों तक जेल में रहते हैं। शाह ने जैसे ही ये विधेयक पेश किए, विपक्षी सांसदों ने विरोध करना शुरू कर दिया। उन्होंने विधेयकों की प्रतियां फाड़कर शाह की तरफ फेंकी। इसके साथ ही वे नारेबाजी करते हुए सदन के बीच में पहुंच गए।
गृहमंत्री शाह ने स्पष्ट किया कि ये विधेयक जल्दबाजी में नहीं लाए गए हैं और इन्हें संसद की संयुक्त समिति (जेपीसी) को भेजा जाएगा, जिसमें सभी दलों के सांसद सुझाव दे सकेंगे। शाह ने कहा, हम इतने बेशर्म नहीं हो सकते कि गंभीर आरोपों के बावजूद सांविधानिक पदों पर बने रहें। कांग्रेस के केसी वेणुगोपाल और एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी जैसे विपक्षी सांसदों ने इस विधेयक का विरोध किया और इसे संविधान और संघीय ढांचे के खिलाफ बताया।
हंगामे के बीच लोकसभा को दोपहर तीन बजे तक स्थगित किया गया। जब सदन दोबारा शुरू हुआ तो शाह ने कहा कि इन विधेयकों को 31 सदस्यों वाली जेपीसी को भेजा जाएगा, जो अगले संसद सत्र से पहले अपनी रिपोर्ट देगी। लेकिन विपक्षी के विरोध के चलते सदन को फिर शाम पांच बजे तक स्थगित करना पड़ा।
ये तीन विधेयक केंद्र शासित प्रदेश (संशोधन) विधेयक 2025; संविधान (130वां संशोधन) विधेयक 2025 और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक 2025 हैं। इनका मकसद यह है कि अगर प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री को किसी गंभीर अपराध में गिरफ्तार कर लगातार तीस दिनों तक जेल में रखा जाता है, तो 31वें दिन वे अपने पद से हटा दिए जाएंगे। दिलचस्प बात यह है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और तमिलनाडु के मंत्री वी. सेंथिल बालाजी ने गिरफ्तारी के बावजूद अपने पद से इस्तीफा नहीं दिया था।
एक विधेयक में प्रावधान है कि अगर कोई मंत्री लगातार तीस दिनों तक किसी ऐसे अपराध के आरोप में हिरासत में रहता है, जिसकी सजा पांच साल या उससे अधिक हो सकती है, तो राष्ट्रपति उन्हें प्रधानमंत्री की सलाह पर 31वें दिन हटा देंगे। अगर प्रधानमंत्री सलाह नहीं देते, तो 31वें दिन के बाद वह व्यक्ति खुद-ब-खुद मंत्री पद से हटा हुआ माना जाएगा।
विपक्ष ने इन विधेयकों को तानाशाही वाले और अलोकतांत्रिक बताया और भाजपा पर देश को पुलिस राज्य में बदलने की कोशिश करने का आरोप लगाया। कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी ने कहा कि ये विधेयक पूरी तरह से तानाशाही वाले हैं और संविधान के खिलाफ हैं। उन्होंने कहा, अगर कल को किसी मुख्यमंत्री पर झूठा मुकदमा दर्ज कर उसे तीस दिन तक जले में रखा जाए, तो वह अपने आप पद से हट जाएगा। यह पूरी तरह से अलोकतांत्रिक है।
असदुद्दीन ओवैसी और अभिषेक बनर्जी ने किया विरोध
वहीं, हैदराबाद सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने भी कहा कि भाजपा सरकार देश को पुलिस राज्य बनाना चाहती है। उन्होंने पूछा, प्रधानमंत्री को कौन गिरफ्तार करेगा? हम इन विधेयकों का पूरा विरोध करेंगे। तृणमूल कांग्रेस के सांसद अभिषेक बनर्जी ने कहा कि सरकार बिना किसी जवाबदेही के सत्ता, पैसा और नियंत्रण चाहती है। उन्होंने भी इन्हें तानाशाही वाले विधेयक बताया।
किस संदर्भ में लाया गया ये बिल?
इन विधेयकों का उद्देश्य प्रधानमंत्री या किसी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के मुख्यमंत्री को पद से हटाना है, अगर उन्हें 30 दिनों तक लगातार गंभीर आपराधिक आरोपों में गिरफ्तार या हिरासत में रखा जाता है। यदि इनमें से किसी को लगातार 30 दिनों तक ऐसे अपराधों के लिए गिरफ्तार किया जाता है, जिसके लिए कम से कम पांच साल की जेल हो सकती है, तो वे 31वें दिन अपना पद खो देंगे। ये विधेयक पूर्व दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और तमिलनाडु के मंत्री वी. सेंथिल बालाजी की गिरफ्तारी के बाद भी उनके पदों से इस्तीफा न देने के संदर्भ में लाए गए हैं।
विधेयक के अनुसार, कोई भी मंत्री, जो अपने पद पर रहते हुए लगातार 30 दिनों तक किसी ऐसे कानून के तहत अपराध करने के आरोप में गिरफ्तार और हिरासत में लिया जाता है, जिसके लिए पांच साल या उससे अधिक की कैद की सजा हो सकती है, उसे 31वें दिन प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा उनके पद से हटा दिया जाएगा।