पीजीआई में बच्चों की किडनी से जुड़ी बीमारी का होगा और अच्छा इलाज, 20 बेड होंगे
लखनऊ। संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान में जल्द ही पीडियाट्रिक नेफ्रोलॉजी विभाग की शुरुआत होगी। इसमें 20 बेड होंगे। एक वेंटिलेटर के साथ ही डायलिसिस सुविधा भी होगी। प्रदेश के किसी भी सरकारी चिकित्सा संस्थान में अभी तक बच्चों की किडनी संबंधी समस्याओं के इलाज के लिए अलग से कोई विभाग नहीं है।
पीडियाट्रिक नेफ्रोलॉजी विभाग में तीन वर्षीय डॉक्टरेट ऑफ मेडिसिन (डीएम) पाठ्यक्रम की शुरुआत भी की जाएगी। यानी विभाग में न सिर्फ रोगियों का इलाज होगा, बल्कि नए विशेषज्ञ डॉक्टर भी तैयार किए जाएंगे।संस्थान की एकेडमिक काउंसिल ने इसका प्रस्ताव पास कर दिया है। अब इसे जनरल बॉडी की मुहर के लिए बैठक में रखा जाएगा। संस्थान की सभी समितियों से प्रस्ताव पास कराने के बाद उसे नेशनल मेडिकल काउंसिल के पास भेजा जाएगा। वहां से मंजूरी मिलने के बाद अगले सत्र से यहां इलाज के साथ ही डीएम नेफ्रोलॉजी कोर्स की शुरुआत भी हो जाएगी।
पीजीआई में दिल से जुड़ी समस्याओं से पीड़ित नवजात बच्चों की सर्जरी की व्यवस्था भी होगी। इसके लिए संस्थान में 500 करोड़ रुपये की लागत से सलोनी हार्ट सेंटर की स्थापना होने जा रही है। अमेरिका की सलोनी हार्ट फाउंडेशन की संस्थापक एवं प्रेसिडेंट मृणालिनी सेठी और उनके पति हिमांशु सेठी ने इसकी स्थापना के लिए धनराशि दी है। ऐसे में यहां जल्द ही सेंटर फॉर एक्सीलेंस इन पीडियाट्रिक कार्डियोलॉजी यूनिट का निर्माण किया जाएगा।
-फाउंडेशन शुरुआती चरण में 30 बेड से यूनिट की शुरुआत करेगा। दूसरे चरण में 100 और तीसरे चरण में यूनिट का विस्तार 200 बेड तक किया जाएगा। अनुमान है कि इस सेंटर पर हर साल हृदय की संरचना से जुड़ी जन्मजात समस्याओं (कंजेनाइटल हार्ट डिजीज) से पीड़ित पांच हजार बच्चों की सर्जरी और 10 हजार बच्चों का इलाज संभव हो सकेगा।
बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. हिमांशु चतुर्वेदी बताते हैं कि किडनी की बीमारी आमतौर पर बड़ी उम्र में होती है, लेकिन कई बार बच्चों में भी इसकी समस्या देखने को मिलती है। इसकी मुख्य वजह जन्मजात किसी विकृति या फिर आनुवांशिक हो सकती है। किडनी की समस्या होने पर बच्चे को मुख्य रूप से बुखार, ठंड लगना और पीठ दर्द के लक्षण हो सकते हैं।