हार के डर से याद आ गया ‘नेता’ नहीं ‘बेटा’ होना

इंदौर। विधानसभा क्रमांक 1 से कांग्रेस के प्रत्याशी संजय शुक्ला को चुनाव आते ही जनता का बेटा होना याद आ गया है। गौरतलब है कि नेताजी सोशल मीडिया पर ‘नेता नहीं बेटा हूँ’ लिखकर अपनी छवि बदलने का प्रयास कर रहे हैं, जिसके कारण उनका यह बदला हुआ चुनावी अवतार क्षेत्र के लोगों में चर्चा का विषय बन गया है।
क्षेत्रवासियों का मानना है कि यह स्पष्ट रूप से हारने का डर और कांग्रेस पार्टी की बौखलाहट भरी प्रतिक्रिया है। क्योंकि इस विधानसभा क्षेत्र से भाजपा के कद्दावर नेता कैलाश विजयवर्गीय खड़े हैं, जिसके कारण यह सीट भाजपा के पक्ष में एकतरफा जाती दिख रही है।
क्षेत्र क्रमांक 1 की जनता की मानें तो संजय शुक्ला अपने रिपोर्ट कार्ड में फेल हो रहे हैं। उन्होंने 2018 के चुनावों में बोरिंग और ब्रिज के जो वादे किए थे, वह तो अब ठन्डे बस्ते में ही गुम दिख रहे हैं।
वहीँ शुक्ला ने 5 वर्षों और विशेषकर कोरोना काल में जो अभद्र व्यवहार किया था, उसके कारण एक रोष उत्पन्न हो गया है। ऐसे में 5 सालों तक नेता का रवैया अपनाकर चुनावी मौसम में बेटा बनना जनता को कुछ अधिक रास नहीं आ रहा है। जनता शुक्ला को पीठ पीछे पानी पी-पीकर कोस रही है।
उल्लेखनीय है कि पूर्व में महापौर का चुनाव भी हार चुके संजय शुक्ला को अब अपनी विधायकी और राजनीतिक करियर भी गंवाने का भय सता रहा है, जिसके कारण वह कथाओं और यात्राओं का सहारा तो ले ही रहे हैं। साथ ही अपनी बेटा होने की इस छवि का निर्माण करने का असफल प्रयास भी कर रहे हैं। अब देखना यह होगा कि चुनावों में उन्हें इसका कितना लाभ होता है, क्योंकि जनता की राय तो बनी हुई लगती है।