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‘प्रथाओं की ओढ़े चुनरी: बींदणी’ की अदाकारा गौरी शेलगांवकर ने बताए रक्षाबंधन के सही मायने

भाई-बहन का रिश्ता संसार के सबसे अनमोल रिश्तों में से एक है। कभी वो एक-दूसरे से टीवी का रिमोट छीनते हैं, तो कभी आख़िरी पिज्जा स्लाइस के लिए लड़ते हैं, लेकिन जब समय कठिन होता है, तो वे एक-दूसरे की सबसे मजबूत ढाल बनकर भी खड़े होते हैं। रक्षाबंधन का त्योहार इसी अनकहे, लेकिन गहरे प्रेम की याद दिलाने का पर्व है, जिसमें हँसी, प्यार, वादों और बचपन की मीठी शरारतों का संगम होता है।

इस ख़ास अवसर पर सन नियो के अपकमिंग शो ‘प्रथाओं की ओढ़े चुनरी: बींदणी’ में घेवर की भूमिका में नज़र आने वाली गौरी शेलगांवकर ने रक्षाबंधन से जुड़ी एक भावुक और सुंदर याद साझा करते हुए कहा, “मेरे भाई के साथ मेरा रिश्ता हमेशा से बहुत खास रहा है। वो मुझसे बड़े हैं और बचपन से ही मुझे लेकर बहुत प्रोटेक्टिव रहे हैं। आज भी हम साथ रहते हैं और हमारा रिश्ता भाई-बहन कम, दोस्तों जैसा ज़्यादा लगता है। बचपन में रक्षाबंधन मेरे लिए गिफ्ट्स का त्योहार था. मैं रक्षा बंधन के कई दिन पहले उन्हें बता देती थी कि इस बार मुझे क्या चाहिए! उस समय राखी बाँधना और गिफ्ट्स पाना ही सबसे बड़ा सेलिब्रेशन होता था, लेकिन अब जब हम बड़े हो गए हैं, तो समझ में आता है कि रक्षाबंधन सिर्फ़ गिफ्ट्स का नहीं, बल्कि उस गहरे भाव का त्योहार है जो कहता है कोई है जो हमेशा आपके साथ है।”

गौरी रक्षाबंधन की ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व को लेकर चर्चा करते हुए कहती हैं,“रक्षाबंधन सचमुच एक खूबसूरत और प्रतीकात्मक त्योहार है। मुझे महाभारत की वो कथा बहुत पसंद है, जब द्रौपदी ने अपने आँचल से श्रीकृष्ण के हाथ पर पट्टी बाँधी थी और बाद में श्रीकृष्ण ने चीरहरण के समय उनकी लाज बचाई। वही भाव इस त्योहार की आत्मा है, एक ऐसा रिश्ता जो भरोसा, रक्षण और निस्वार्थ प्रेम पर टिका होता है। यह सिर्फ़ एक रस्म नहीं, बल्कि उन लोगों का उत्सव है जो हर परिस्थिति में हमारे साथ खड़े रहते हैं।”

‘प्रथाओं की ओढ़े चुनरी: बींदणी’ एक ऐसी कहानी है, जिसमें गहराई है, परंपराओं की खुशबू है और एक नायिका की हिम्मत है जो रूढ़ियों से लड़कर अपने जीवन की नई राह बनाती है।

देखिए घेवर की यह सशक्त कहानी,12 अगस्त से, हर रात 9 बजे, सिर्फ़ सन नियो पर।

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